निस्ठुर पुत्र

निस्ठुर पुत्र

A Poem by Rinky Bhandari

निस्ठुर पुत्र

आज मेरी रुह �™ज्जा से जर जर हुई ,
नीरव है वो बस अश्क है बहा रही।
घर से एक माँ आज है बेघर हुई,
अपने ही पुत्रों कि वो यातनाएँ झे�™ रही।
क�™ तक थी जो सा�-र वितत आज है पोखर हुई,
मुकु�™ित जिस पुष्प को प्यार माँ ने था दिया,
आज खि�™कर पुष्प ने उसको ही है छ्�™ा,
दावान�™ भी ना भस्म कर सके जिसको।
आज देह पुत्र की इस कदर पत्थर हुई,
थी जो कभी अमू�™्य मुकुताफ़�™ माँ उसके �™िये,
आज वो घर की देवी, मरकत से है कंकर हुई,
इतना स्वार्थ, इतना उम्माद?किसको तू छ्�™ रहा?
भोर जो सुन्दर है तेरी तभी तू ये भू�™ रहा,
हर सुबह की रैन है,आने मे उसे कब देर हुई?

© 2015 Rinky Bhandari


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Added on June 30, 2015
Last Updated on June 30, 2015

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Rinky Bhandari
Rinky Bhandari

delhi, Delhi, India



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