पत्थर

पत्थर

A Poem by Rinky Bhandari

अब जो मि�™े राहो मे पत्थर कही।

तो पूछूँ�-ी उससे क्यूँ तू रोता नही,

ना जाने कितनी चोट देती है दुनिया तुझे,

क्यूँ तुझे फिर भी हर चोट पे दर्द होता नही?

ना अश्क बहाता है तू ना खुशी में हंसता है,

क्यों तुझे कोई एहसास भि�-ोता नही?

हर कोई तुझमे अपना स्वार्थ ढूंढता है,

क्यूँ तेरा स्वाभिमान कभी खोता नही?

माना कि ये दुनिया बहुत बडी है,

पर अस्तित्व तेरा भी कोई छोटा नही,

ना तू शिकवा करता है, ना शिकायत,

क्या कोई �-म तेरे दि�™ को छूता नही,

या तो तू आज तक कभी जा�-ा ही नही,

या फिर खामोश दि�™ तेरा कभी सोया ही नही॥

© 2015 Rinky Bhandari


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Waaaaah!!!!
bahot khoobsurat........
patthar ko madhyam bana sanwednaao aur ehsaas ki baatein......
bahot khoot......
bahot badhaayi!!!
:)

Posted 9 Years Ago


1 of 1 people found this review constructive.


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Added on June 22, 2015
Last Updated on June 22, 2015

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Rinky Bhandari
Rinky Bhandari

delhi, Delhi, India



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