Sultan Shahin’s Response to Dr Ayman Al-Zawahiri’s Message Inciting Kashmiris for JihadA Story by New Age Islamखुदा की तरफ से भेजे गए सारे दीन और धर्मों को समाप्त कर दिया जाएl इसी ™िए अब इन कश्मीरी राजनीतिज्ञोंडॉक्टर ऐमन अ™ ज़वाहिरी, अपना हा™िया संदेश क™म बंद करने से पह™े आपको कश्मीर के फ™सफा ए कश्मीरियत को समझने का प्रयास करना चाहिए थाकश्मीर के मुस™मान पारम्परिक तौर पर इस्™ाम के संदेश को उन कट्टरपंथियों "र अ™-ाववादियों से कहीं अधिक बेहतर समझते हैं जो इस्™ाम को एक निरंकुश, फासीवादी "र राजनीतिक सिद्धांत के तौर पर पेश करते हैं ताकि मोहम्मद स™्™™्™ाहु अ™ैहि वस™्™म से पह™े खुदा की तरफ से भेजे -ए सारे दीन "र धर्मों को समाप्त कर दिया जाएl इसी ™िए अब इन कश्मीरी राजनीतिज्ञों ने भी जो अब अ™-ाववादी चाहते हैं भारत के सेकु™र "र विकास वादी संविधान के तहत निर्मित विधान सभा के चुनावों में भा- ™िया हैl यही कारण है कि केव™ कुछ कश्मीरी युवकों ने ही आतंकवाद की राह विक™्प की है जिसे आप जिहाद का नाम देते हैंl जम्मू कश्मीर राज्य में पेश आने वा™े अधिकतर आतंकवादी घटनाएं पड़ोसी देश पाकिस्तान के जं- का एक भा- हैं जो उसने अपने ™ाभ के ™िए छेड़ रखा हैl इसमें कोई शक नहीं कि पाकिस्तान आतंकवाद का एक केंद्र बन चुका है जो दुनिया के सभी क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा हैl आपने अपने ख़त का एक भरोसे यो-्य हिस्सा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों की ™ानत व म™ामत में खर्च किया हैl जबकि यही वह एजेंसियां हैं जो आपकी सुरक्षा कर रही हैं, जैसा कि उन्होंने आखरी सांस तक आपके पूर्ववर्ती उसामा बिन ™ादेन की सुरक्षा की थीl आपके इस व्यवहार को अत्यंत उच्च कोटि का कृतघ्न समझा जा सकता है, "र इस कारण यह कुफ्र की तरह हुआ, जैसा कि इस्™ाम में कुफ्र "र नाशुक्री एक दोसरे के समानार्थक हैंl ™ेकिन ऐसा ™-ता है कि कश्मीरी युवकों को आतंकवाद के रास्ते पर डा™ने में असफ™ होने के बाद इन्हीं एजेंसियों ने ११/९ दुर्घटना के बाद से आपकी सुरक्षा की है, "र अब -जवा ए हिन्द के एक बि™कु™ झूटे "र निराधार सिद्धांत के नाम पर कश्मीरी युवकों को ™ुभाने की जिम्मेदारी आपके हवा™े की हैl अवश्य उन्होंने आपको उन्हें बुरा भ™ा कहने की अनुमति दी हो-ी ताकि ™ो- उनकी रुसवाई "र बदनामी को आपके बयानों से ना जोड़ेंl फिर हो सकता है कि आपको कुछ भरोसा हासि™ हो जो वह बजा तौर पर खो चुके हैंl तथापि, जैसा कि मैंने आपसे पह™े भी कहा है कि कश्मीरी मुस™मान "र वहाँ के युवा भी इस्™ाम के पै-ाम "र जिहाद के क™्पना को आपसे कहीं अधिक बेहतर समझते हैंl यह बि™कु™ एक आम बात है कि जामत ए इस्™ामी के संस्थापक व विचारक मौ™ाना अबु™ आ™ा मौदूदी ने भी पाकिस्तान के खुफिया "र प्रोक्सी जं- को मानने से इनकार कर दिया थाl सैयद क़ुतुब "र मौ™ाना मौदूदी को आधुनिक यु- के तथाकथित जिहाद का अस™ उत्तेजक "र कोच माना जाता हैl ™ेकिन इस्™ाम के बारे में अपने अतिवादी "र राजनीतिक दृष्टिकोण के बावजूद उन्होंने इस्™ाम को आप से बेहतर समझा "र पाकिस्तान के खुफिया "र प्रोक्सी जं- को जिहाद मानने से इनकार कर दियाl जिहाद के बारे में इस्™ामी शरीअत के नियमों की समझ उन्हें इतनी स्पष्ट थी कि वह अपने विचारों के इज़हार पर सज़ा ए मौत का भी सामना करने के ™िए तैयार थेl उनके बेटे मौ™ाना हैदर फारुक मौदूदी के अनुसार, “मौ™ाना सैयद अबु™ आ™ा मौदूदी ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि ‘कुरआन’ के अनुसार एक देश का किसी ऐसे देश के खि™ाफ जं- छेड़ना हराम है जिसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित होंl "र उन्होंने कहा कि अ-र कोई पक्ष समझौते के विरुद्ध करता है तो सबसे पह™े विरोधी पक्ष को उसके साथ सभी राजनयिक संबंध समाप्त करना चाहिए "र इसके बाद जं-™ी रणनीति को प्रयो- में ™ाना चाहिए ना कि उपर से राजनयिक संबंध कायम रखे "र अंदर ही अंदर जं-™ी रणनीति से काम ™ेl उन्होंने ™िखा है कि इस्™ाम ने हमें यह शिक्षा दी है कि अ-र हम किसी के विरुद्ध ™ड़ना चाहते हैं तो “हमें खु™े तौर पर ™ड़ना चाहिए "र -र ‘हम’ किसी के साथ दोस्ताना संबंध कायम रखना चाहते हैं तो हमें बिना किसी तास्सुब के इस रिश्ते पर जमे रहना चाहिएl” (मौ™ाना सैयद अबु™ आ™ा मौदूदी का इंटरव्यू, मतबुआ जमात ए इस्™ामी का पन्द्रह रोज़ा मुज™्™ा “कौसर” दिनांक १७ अ-स्त १९९८ ई०) डॉक्टर ऐमन, आप कहते हैं कि, “शरई हिदायतों का अभाव मुजाहेदीन को क़ाति™ बना देता है "र -िरोह ख़ूँ बहा "र ब्™ैक मे™िं- के ™िए अपहरण करने ™-ते हैंl दुर्भा-्यवश ऐसे ही कुछ विच™न "र बीमारियाँ मुजाहेदीन की सफों में दाखि™ हो चुकी हैं, "र अम्र बि™ मारुफ़ "र नहिं अनि™ मुनकर के अ™ावा इस स्थिति से निमटने का "र कोई रास्ता नहीं हैl “हाँ यह सच है कि शरई हिदायतों का अभाव मुजाहेदीन के ™िबादे में मौजूद -ुंडे "र बदमाश काति™ बन जाते हैं "र वह खूँ बहा "र ब्™ैक मे™िं- के ™िए अपहरण करने ™-ते हैंl मुझे विश्वास है कि आप स्वयं को मौ™ाना मौदूदी से बड़ा इस्™ाम "र जिहाद का आ™िम नहीं समझते हों-े जिन्होंने कश्मीर में प्रोक्सी जं- को जिहाद मानने से इनकार कर दिया थाl उपर्युक्त वास्तविकता स्वीकार करने के बावजूद आप क्यों कश्मीरी युवकों को “क़ाति™ बनने "र खूँ बहा "र ब्™ैक मे™िं- के ™िए अपहरण करने वा™ाl” बनने के ™िए कह रहे हैंl इस्™ामी शरीअत से पुर्णतः आपकी नावाकिफियत "र अज्ञानता उस समय स्पष्ट हो जाती है जब आप बार बार कश्मीरियों को कश्मीर में अंजाम दीए जाने वा™े आतंकवाद को ऐन फर्ज़ मानने के ™िए कहते हैंl ऐसा ™-ता है कि आपको इस बि™कु™ प्रारम्भिक जानकारी से भी कोई वाकिफियत नहीं है कि ऐन फर्ज़ कहते किसे हैंl मैं आपके सामने दो अत्यंत महत्वपूर्ण मकातिब ए फिकह की रौशनी में ऐन फर्ज़ की एक संक्षिप्त परिचय बयान करता हूँl इब्ने आबिद ने कहा: (हनफी फिकह की रौशनी में): “जिहाद उस समय ऐन फर्ज़ हो जाता है जब दुश्मन मुस™ामानों की सरहदों में से किसी हिस्से पर हम™ा कर दे, "र यह सरहदों के करीब रहने वा™ों पर ऐन फर्ज़ होता हैl जो ™ो- सरहदों से दूर हैं उनके ™िए यह फर्ज़ ए किफाया होता हैl हाशियतु™ द्सुकी में (फिकह मा™की की रौशनी में) यह कहा -या है कि: जिहाद ऐन फर्ज़ उस समय बन जाता है जब दुश्मन अचानक हम™े कर देl” अत्यंत प्रमाणिक शरई नियमों की रौशनी में कश्मीरियों पर जिहाद तो २२ अक्टूबर १९४७ को उस समय ऐन फर्ज़ हो सकता था जब पाकिस्तान के सशस्त्र सीमावर्ती कबाए™ी निवासियों ने पाकिस्तानी फौजी दस्तों के साथ मि™ कर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से राज्य पर हम™ा किया थाl वह स्थानीय ™ो- "र पाकिस्तानी अर्ध सैनिक ब™ पर कब्ज़ा करने के ™िए बढ़े ™ेकिन बारामु™ा पहुँच कर उन्होंने ™ूट मार, क़त्™ "र ब™ात्कार करना शुरू कर दियाl "र निश्चित रूप से कश्मीरियों ने उन सफ़ाक काति™ों के खि™ाफ अपनी पूरी ताकत से ™ड़ कर इस फर्ज़ को अंजाम दिया थाl अपने डीएम पर पाकिस्तानी सेना"ं का मुकाब™ा करने में असफ™ होने पर, उस समय के राज्य के शासक महाराजा हरी सिंह ने कि जिनके साथ पाकिस्तान ने निषेध संधि किया था जिसमें उसने राज्य के माम™ों में हस्तक्षेप ना करने का प्रण किया था’ उन्होंने मदद के ™िए हिन्दुस्तान से अनुरोध कियाl उस समय कश्मीरियों को बचाने के ™िए भारतीय सेनाएं आईं, ™ेकिन महाराजा हरी सिंह के साथ इंस्ट्रूमेंट 'फ ऐक्सेशन (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर करने के बाद, जिसने जम्मू व कश्मीर को भारत का एक आंतरिक भा- बना दियाl डॉक्टर अ™ ज़वाहिरी, आपको मा™ुम होना चाहिए कि कश्मीर की इस तारीख से हर कश्मीरी काफी अच्छी तरह परिचित हैl इस™िए, भारत पर घुसपैठ "र कब्ज़े की तोहमत बाँधने से कश्मीर के ™ो- बेवकूफ नहीं बनें-ेl डॉक्टर ज़वाहिरी, आपने कुरआन की एक विशिष्ट संदर्भ वा™ी आयत का हवा™ा देकर मुस™मानों को -ुमराह करने की कोशिश की है, "र एक ऐसी कुरआनी हिदायत में विस्तार पैदा करने की कोशिश की है जो स्पष्ट रूप से उस एक ख़ास जमात के हक़ में नाज़ि™ हुई थी जो इस्™ाम के पै-म्बर स™्™™्™ाहु अ™ैहि वस™्™म के साथ जं- के ™िए तैयार थीl पिछ™े पांच छः सौ सा™ों से अनेकों उ™ेमा यही कहते हुए आए हैं कि इन आयतों को उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए जिसमें उनका नुज़ू™ हुआ थाl आपने एक मस™े में कश्मीर के ™ो-ों को -ुमराह करने की अपनी कोशिश में एक ज़ईफ़ "र मौजुअ हदीस का हवा™ा पेश किया है जिसे आप जैसे ™ो- -जवा ए हिन्द से ताबीर करते हैंl आपसे कहीं अधिक प्रमाणिक सऊदी स™फी आ™िम ए दीन शैख़ मोहम्मद सा™ेह अ™ मुन्जद ने उन तीनों प्रमाणों को कि जिनके जरिये भारतीय उपमहाद्वीप की फतह के बारे में यह हदीस हम तक पहुंची है, ज़ईफ़ या मुद™्™स करार दिया हैl इमाम बुखारी या इमाम मुस्™िम जैसे किसी भी बड़े मुहद्दिस ने इस हदीस को अपनी किताबों में नक़™ नहीं किया हैl कोई भी -ंभीर आ™िम ए दीन अपनी बात के समर्थन में इस तरह की हदीस नक™ नहीं करे-ाl डॉक्टर ज़वाहिरी, अब आपके राजनीतिक "र धार्मिक द™ी™ों का खंडन पूर्ण हुआ, अब मैं संक्षेप में इस्™ाम की अस™ तस्वीर आपके सामने पेश करता हूँ ताकि आपको इस्™ाम की कुछ जानकारी प्राप्त होl मैं इस बातचीत से संबंधित कुछ मसाइ™ पर दीन के बारे में अपनी समझ संक्षेप के साथ आपके सामने पेश करूँ-ाl कुरआन अ™्™ाह की मख™ूक हैl यह उन आयतों का एक मजमुआ है जो प्रारम्भिक मक्की दौर में मोहम्मद स™्™™्™ाहु अ™ैहि वस™्™म पर इस आफाकी मज़हब के ™िए हिदायत के तौर पर नाज़ि™ हुई हैं जो ज़मीन पर हज़रत आदम अ™ैहिस्स™ाम की पैदाइश से ही सभी कौमों की तरफ एक ही संदेश के साथ भेजे जाने वा™े बराबर की हैसियत के कई रसू™ों (कुरआन २:१३६) के जरिये भेजा -या हैl इस™िए, वह प्रारम्भिक आयतें जो हमें अमन "र सद्भाव, अच्छा साहचर्य, सब्र, सहिष्णुता "र बहु™तावाद की शिक्षा देती हैं कुरआन की बुनियादी "र तामीरी आयतें हैंl यही इस्™ाम का बुनियादी संदेश हैl ™ेकिन कुरआन में बहोत सारी ऐसी संदर्भ वा™ी आयतें भी हैं जो नबी स™्™™्™ाहु अ™ैहि वस™्™म "र आपके सहाबा के ™िए सख्त "र मुश्कि™ तरीन हा™ात से निमटने के ™िए अहकाम के तौर पर नाज़ि™ हुई थीं इस™िए कि मुशरेकीन ए मक्का "र मदीना के अक्सर अह™े किताब ने नबी स™्™™्™ाहु अ™ैहि वस™्™म के ज़रिये आने वा™े खुदा के संदेश को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था "र नबीह स™्™™्™ाहु अ™ैहि वस™्™म "र आप के कुछ सहाबा को नेस्त व नाबूद करने का फैस™ा कर ™िया थाl यह आयतें अज़ीम तारीख़ी महत्व की हामि™ हैं "र हमें यह बताती हैं कि हमारे धर्म को कायम करने में हमारे नबी स™्™™्™ाहु अ™ैहि वस™्™म को कैसी अपराजेय परेशानियों का सामना करना पड़ा थाl ™ेकिन अपनी तारीखी अहमियत के बावजूद १४०० सौ सा™ पह™े जब जं- समाप्त हो -ई "र अ™्™ाह के फज़™ से उसमें मुस™मान विजई हो -ए तो अब यह अहकाम व हिदायत हमारे ™िए काबि™े इत™ाक नहीं हैंl हम अभी किसी जं- में नहीं हैंl इस™िए, डॉक्टर ज़वाहिरी, मेहरबानी कर के आप मुस™मानों को -ुमराह करने के ™िए जं- से संबंधित आयतों का हवा™ा पेश करना "र उनके इत™ाक में विस्तार पैदा करना बंद कर देंl हम अब जदीद कौमी रियासतों के दौर में रह रहे हैं; हमारे अंतर्राष्ट्रीय संबंध संयुक्त राष्ट्र के चार्टर की हिदायत के पाबंद हैं जिन पर सभी मुस्™िम बहु™ देशों सहित दुनिया के ™-भ- सभी देशों ने हस्ताक्षर किये हैंl आज किसी भी राज्य के ™िए नए क्षेत्रों को फतह करना "र वहाँ अपनी हुकूमत कायम करना संभव ही नहीं है जैसा कि बीसवीं शताब्दी के पह™े अर्धार्ध तक यह एक मामू™ थाl इस™िए, सा™ में कम से कम एक बार जिहाद पर जाने जैसी सभी बातें समाप्त होनी चाहिए अ-र सच में कुरआन "र हदीस ने ही इसका आदेश क्यों ना दिया होl यह अब अम™ के काबि™ नहीं है "र खुदा हमें असंभव कार्य अंजाम देने का आदेश नहीं देता हैl बहर हा™, जिहाद का आदेश देने में अ™कायदा "र आइएसआइएस जैसी जमातों के पास कतई कोई शरई बुनियाद नहीं हैl केव™ एक इस्™ामी राज्य ही दोसरे राज्य के साथ अपने सभी संबधों को समाप्त करने के बाद जिहाद शुरू कर सकती हैl यह इस्™ाम का एक शरई आदेश है जिसे मुस™मान बहोत अच्छी प्रकार समझते हैंl मुस™मानों की वैश्विक ख़ि™ाफ़त की दावत का जवाज़ ना तो कुरआन में है "र ना ही किसी हदीस मेंl आधुनिक बहु™तावादी राज्य उस पह™ी इस्™ामी राज्य के साथ बहोत अधिक मि™ती जु™ती हैं जिसे हमारे नबी स™्™™्™ाहु अ™ैहि वस™्™म ने मीसाक ए मदीना में प्रदान किये हुए संविधान के तहत स्थापित किया थाl मुस™मानों को अब किसी आ™मी ख़ि™ाफ़त की आवश्यकता नहीं है, हा™ांकि मुस्™िम बहु™ देश भाईचारे के कुरआनी जज़्बे के साथ मुस™मानों की सहायता कर सकते हैं "र यहाँ तक कि वह मुस्™िम राज्यों का एक कॉमन वे™्थ भी तश्की™ दे सकते हैंl डॉक्टर ज़वाहिरी, ™ोकतंत्र के खि™ाफ आपका -ुस्सा पुर्ण रूप से अकारण "र -ैर इस्™ामी हैl आधुनिक जम्हूरियत अमरुहुम शुरा बैनहुम के कुरआनी आदेश की तशकी™ हैl इस™िए मुस™मान जिस भी देश में रह रहे हों उन्हें वहाँ के ™ोकतांत्रिक संस्था"ं को मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए चाहे वह वहाँ बहुसंख्यक समाज की हैसियत से या मज़हबी अ™्पसंख्यक के तौर पर ही क्यों ना रह रहे होंl आपकी तरफ से इस वास्तविकता के एतराफ़ से अधिक बेहतर "र कुछ नहीं हो सकता कि इस्™ाम एक मुत™कु™ अनान, फिस्ताई "र अ™-ाववादी राजनीतिक विचारधारा नहीं ब™्कि यह बुनियादी तौर पर निजात के बहोत से रास्तों में से एक रूहानी रास्ता है (कुरआन ५:४८), जिसे अ™्™ाह ने विभिन्न ज़मानों में अ™- अ™- नबियों के जरिये पूरी इंसानियत के ™िए भेजा है, "र सभी अम्बिया बराबर की हैसियत के हामि™ थे (कुरआन २१:९२, २१:२५,२:१३६)l खुदा ने हमें नेक आमा™ में एक दोसरे पर बढ़त ™े जाने का आदेश दिया है [कुरआन २३:६१, २:१४८] "र हमें इसी पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिएl जैसा कि कुरआन पिछ™े सभी धर्मों की तस्दीक करने के ™िए नाज़ि™ हुआ था हम दोसरे धर्मों का सम्मान कर सकते हैं "र दोसरे सभी धर्मों को उसी रूहानी सफ़र के रास्ते मां सकते हैंl अ™ व™ा व™ बरा का सिद्धांत जिसका प्रोपे-ेंडा आप जैसे ™ो-ों ने दोसरी ज-हों की तरह कश्मीरियों के नाम अपने ख़त में भी किया है वह ग़™त फहमी "र छोटी सोच पर आधारित है "र आज के अत्यंत मिश्रित "र एक दोसरे से जुड़े विश्व समाज में अम™ के काबि™ नहीं हैl © 2019 New Age IslamAuthor's Note
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Added on July 21, 2019 Last Updated on July 21, 2019 Tags: Moderate Islam, Islam and Islamism Author
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