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A Poem by jhumur

नव है नव है

जैसा सोचो वैसा सब है !

�™हर है या है मौज कोई?

है �-ीत या शब्दों की फ़ौज कोई ?

हर सा�™ जो च�™कर आती है

नववर्ष ही क्यूँ कह�™ाती है ?

 

बद�™े आदत या बात कोई

जो बुरी �™�-े वो साथ कोई ?

जब दुनिया में सब कुछ फर्जी है

आदत दुविधा की दर्जी है

जितना काटो ये बढती है

नव है नव है

जैसा सोचो वैसा सब है !

 

ये आयु क्या कोई जादू है?

अच्छी �™�-ती है सा�™ो तक

फिर उसके आ�-े थक जाती

फिर भी ये बढती रहती है !

 

जरुरत अविष्कार की जननी है

अन�-िनत से बच्चे इसके

विज्ञानं तो च�™ता जाये�-ा

पर धरती जैसा आबादी विस्फोट नहीं !

विज्ञानं में नव ही सब है

कौन कहाँ क्यूँ कब है J

 

प्रकृति भी सब समझती है

रूप नया तो उसने भी धरा

सर्व्वोमिक उष्णता उसने भी बधाई

बर्फ तो पिघ�™ी ,बनी हिमसा�-र से खाई !

 

जीवाणु जी-१ से प्रेरित है

�"र वैज्ञानिक मौन व्रत पर बैठे है

किस रूप में महामारी आए�-ी अब

है दवा भी नव

है दुआ भी नव

 

नियुक्त व्यक्ति को समय कहाँ ?

नौकरी जिसकी सुबह शाम

कोरे का�-ज के पीछे भा�-ते जूते

है सुनम्य अंको की ताम झाम !

 

हो सप्ताह के दिन आठ भी

वह तं�- दुखी ही रहता है

बचपन सा सुख कहीं नहीं

हर दिन सपनो में कहता है J

 

नव है नव है

जैसा सोचो वैसा सब है J

 

 

 

© 2012 jhumur


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114 Views
Added on January 4, 2012
Last Updated on January 4, 2012

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jhumur
jhumur

ahmedabad, India



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