Kabrastan (Do gaz ka makan)A Poem by ImRan kabirBy this poem i am describing about the graves.
दो xt के मकानों की बस्ती में हर कोई vdsyk रहता है
ना किसी से रिश्ता ना किसी से कोई >esyk रहता है हमें अपनी सांसो को ना चाहते हुये भी रोकना पड़ता है परिन्दों का आना जाना ,पत्तियों Qwyksa का ताना बाना रहता है इस बस्ती का खूबसूरत नजराना कूछ दिन vkSj सब्र djys तू "इमरान " फिर तेरा भी gksxk इसी बस्ती में एक अपना मकान :- इमरान कबीर © 2016 ImRan kabirAuthor's Note
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1 Review Added on August 29, 2015 Last Updated on April 6, 2016 AuthorImRan kabirKhalilabad, Uttar Pradesh, IndiaAboutImRan Kabeer A critical poet, and writer. And sometimes write the shayri also. more..Writing
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