Ant ( Hindi)

Ant ( Hindi)

A Poem by hardeep sabharwal

अंत

अंत में सिर्फ सत्य रह जाता है,
कड़वा "र अके™ा
"र ढह जाती है,
तमाम दीवारे पूर्वा-्रहो की,
रेत के बने झूठ के मह™,
"र तुम बन जाते हो,
जो तुम हो,
कितने आवरणो,
कितने मुखोटो के नीचे,
सच नही है किसी चित्रकार सा
जो भर दे जीवन चित्र को मनचाहे र-ों से,
या फिर किसी कवि सा
जो शब्दो के जादू से नये मायने बना दे
"र सच में
ये नही सीख पाया हमसे
बह™ाना "र फुस™ाना,
अब तक यही सुना था कि अंत में
सब कुछ धुंध™ा हो जाता है
या फिर स्याह,
पर सत्य तो है किसी सूर्य के समान
जो अपनी किरणो से
दूर हटा देता है धुंध को ,
अंत को उदय में बद™ कर.



© 2016 hardeep sabharwal


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Added on August 30, 2016
Last Updated on August 30, 2016

Author

hardeep sabharwal
hardeep sabharwal

patiala , punjab , India



About
Hardeep Sabharwal describes himself as person of few words. He is one of millions of middle class Indians who do not have any ideology; they only want to live a peaceful life. The thing that hurts him.. more..

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