Vigyapan ( Advertisement)A Poem by hardeep sabharwalविज्ञापन खींचती है ध्यान बरबस ही, चमक उस सफेद कमीज की जो एक महं-े वाशिं- पाउडर की तारीफ में अख़बार के मुखपृृष्ठ पर छपे विज्ञापन में है, "र उसकी आभा में दब -ई है, एक धुंध™ी, मटमै™ी सी, एक कोने में छपी, तिरस्किृत सी तस्वीर उस किसान की, जिसने क™ ही समाप्त कर ™ी, ™ाचार-ी अपने जीवन की, कर्ज की किश्तो के बोझ में दबकर अन्नदाता को अन्न की कमीं थी क्या ? या वो फ़स -या था उपभोक्तावाद के जा™ में जिसकी चमक इस सफेद कमीज की चमक से भी ज्यादा शानदार है, "र उप™ब्ध है आसान किश्तो पर कुछ मौसम की द-ाबाजी कुछ बेरूखी सत्तासीनो की किश्त दर किश्त च™ते पता नहीं कब वो अपने सांसो की अंतिम किश्त पूरी कर च™ा, "र अब पड़ा है, अख़बार के एक कोने में इस -ंदी राजनीति "र बाजारवाद का अट्टाहास ™-ाता विज्ञापन बनकर . © 2016 hardeep sabharwalReviews
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2 Reviews Added on May 10, 2016 Last Updated on May 10, 2016 Authorhardeep sabharwalpatiala , punjab , IndiaAboutHardeep Sabharwal describes himself as person of few words. He is one of millions of middle class Indians who do not have any ideology; they only want to live a peaceful life. The thing that hurts him.. more..Writing
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