Mere Shabd ( Hindi)A Poem by hardeep sabharwal
मेरे शब्द
शब्दो को बुनना अक्सर सं-ीतमय होता है झी™ मे उठती ज™-तरं-ो से बजते कभी पर्वतो मे उठती प्रतिध्वनियो से कोम™ मंदिर में ईश्वर को अर्पित घंटियों से मधुर आशा का संचार करते ये बुने हुऐ शब्द जोड़ते रिश्तो को सुरो में पिरोते पर मेरे शब्द बिखरे पड़े है यहां तहां कमरे के फर्श पर टेबु™ पर पड़ी किताबो के पीछे तुम्हारी चप्प™ो के पास दरकते हुऐ ये अनकहे शब्द मेरे वजूद "र हमारे रिश्ते जैसे रोज एक उधेड़बुन में इन्हे बुनता हुं "र उधेड़ता हुं पर कभी कोई सुर नहीं निका™ पाया सिवाय एक रूदा™ी के रूदन के . © 2016 hardeep sabharwalReviews
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3 Reviews Added on February 25, 2016 Last Updated on February 25, 2016 Authorhardeep sabharwalpatiala , punjab , IndiaAboutHardeep Sabharwal describes himself as person of few words. He is one of millions of middle class Indians who do not have any ideology; they only want to live a peaceful life. The thing that hurts him.. more..Writing
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