![]() Do korhi ki kavita ( Hindi)A Poem by hardeep sabharwal
दो कौड़ी की कविता
नहीं करवा सकती उतीर्ण किसी नौकरी के साक्षात्कार में, न ही सक्षम है किसी घर का चु™्हा ज™ाने में, नहीं बुझा सकती किसी के भी पेट की आ- को, ये निक्कमी, नाकारा, निखट्टू कविताऐ, सिर्फ रद्दी का-जो की टोकरियां भरती ये दो कौडी़ की कविताऐ ,फिर क्यूं अटा पडा़ हुं मैं सिर से पांव तक इन बेर-ीं, बेढ-ीं कविता" मे? हां नहीं मदद करती ये किन्ही बनावट से ™बरेज साक्षात्कारो में आईने जैसी, जो सामने हो वही दिखाती , हो-ीं ये अक्षम किसी के घर का चु™्हा ज™ाने में पर शायद दिखा सके चि-ांरी कभी किसी क्रातिं को , "र बुझा दे , समाज में भरी हुई नफरत की ज्वा™ा" को , खरीद सकते है कारोबारी ™ो-ो को जिस्म बिकते है, -िरवी भी हो सकते है म-र आत्मा" को कौन खरीद पाया है , कवि बिकते हो-ें , मिट भी जाऐ-ें कविताऐ ना बिकी है, ना मिटे-ीं कभी. © 2016 hardeep sabharwalReviews
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3 Reviews Added on January 19, 2016 Last Updated on January 20, 2016 Author![]() hardeep sabharwalpatiala , punjab , IndiaAboutHardeep Sabharwal describes himself as person of few words. He is one of millions of middle class Indians who do not have any ideology; they only want to live a peaceful life. The thing that hurts him.. more..Writing
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