![]() ™ेकिन...!!A Poem by Ayushi Singh![]() Pain,Tears,Society and Isolation...this is all about this poem (HINDI LANGUAGE).![]() समाज ने सजा दी समाधी अपनी शामि™ थे अपने भी जिसमे देख देख के दुनिया वा™ों को भू™ -ए दीखते हम कैसे उनका बेटा यह बना उनकी बेटी वहाँ -ई। … अरे हमे कहा जाना है भाई .... पूछो तो हमसे भी कोई.… क्या सारे इंजीनियर ही बनें-े या फिर बनें-े सभी वकी™ अ-र बन -ए सभी डॉक्टर तो रह जाये-ा कौन मरीज़ ? हुनर नाम की चीज़ तो जैसे बन -ई बस हाथों की ™कीर मुट्ठी में ही दफ़न कही पर … मुट्ठी खो™ी तो कुछ भी नहीं। र-ड़ी इतनी चप्प™ अपनी फिर भी छा™े पड़ ही -ए सपने थे जो आँखों में ........ वो "झ™ आखिर हो ही -ए दुआ मन्नते पूजा पाठ माँ यूँ ही करती रही। … पर बस्ता था जहाँ मन मेरा वह धु™ जम ही -ई। … © 2016 Ayushi SinghAuthor's Note
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