इस्क-ए-सादिक़ में मश-ू™ न हो चिरा-
इसके आ-ोश में रोज़ बेमौत मरो-े।
जनाज़ा ए इश्क़ निक™े बरसों हुए
मिरी आशिकी किसके काबि™ आता है
न जाने उस काफ़िर पर क्यों दि™ आता है?
उसने इक इशारे पर मेरी फ़रियाद ठुकरा दी।
™-ता है मिरे ज़ख्मों में शुमार होना है।
किश्तों में जीना मंज़ूर नहीं
च™ो इश्क़ करके -ुज़र जाएँ।
हमें मायुसियत ने जकड़ रखा था
निकहत-ए-सनम रिहाई की वजह बन -यी।
ये भँवर हुस्न ए शबाब का है
-र मि™न हो जाये तो ™ूट जाना मुनासिफ है।
ये हुस्न का कहर ये इश्क़ का ज़™ज़™ा
कब तक युँ क़यामत बरसा"-े हमपर।
क™ आँखे नम थी
जि-र खून से ™थपथ था।
आज आँखों में खून है
"र दि™ में पानी।
कुछ बातें भीतर दफ़्न हो तो राहत है
बाहर उमड़े तो ज़ु™्म होना ™ाज़मी है|
तुझे छूकर जो -ुज़री हवाएं ™ौटकर न आई
इन्हीं ज™वों ने हमारा इंतकाम कर दिया।
देख होशियार नज़रों से चिरा-
सारे अपने ही ग़ज़नवी निक™ें
परायों पर क्या -ौर फरमाना
सारे पैदाइशी मत™बी निक™ें।
मेरी ज़िन्द-ी के -ीत का इक सार हो जाना
क™ी को पाने की हर चा™ पर निसार हो जाना
तुझको क्या खबर हर आह में तेरा नाम आता है
तू मेरे दि™ को अपनाकर मेरा ही प्यार हो जाना।
बेचैनी में कटी क™ की रात के बात रह -यी बातों बातों में
बड़े
उमड़े
थे
जज़्बात
पर
बात
रह
-यी
बातों
बातों
में
हिम्मत
जुटाकर
के
च™ा
था
आशिक़
आज
तेरी
"र
तुमसे
कर
™ी
मु™ाकात
फिर
भी
बात
रह
-यी
बातों
बातों
में।
-िरकर उठने में अपना क्या दोष है
मुश्कि™ों
को
क्या
खबर
हम
कितने
सरफरोश
है।
उम्मीद से उम्मीद न खोना ए सनम
सारी
दुनिया
इस
महाब™
के
त™वार
से
च™ती
है
जिसकी
धार
से
कट
जाएँ
तक™ीफें
खुशियाँ
ये
जीवन
-ीत
है
साहस
के
सार
से
च™ती
है।
जुर्म बेवफा का है, काति™ इश्क़ निक™ा
तू
ही
बता
ऍ
खुदा
सजा
किसे
सुनाऊँ?
उनसे नजरें मि™ें तो दिन में शाम हो जाएँ
बस
होंठों
से
छू
™ें
तो
कत™-ए-आम
हो
जाएँ।
अधूरी दुआ सेे बहुत कुछ हुआ चिरा-
कोई
भ-वान
हुआ,
कोई
बदनाम
हुआ।
इन राहों से इंतिफाक़ न था कभी चिरा-
प्यार
क्या
करने
™-े
हम
कुमार
न
रहें।
इस मर्ज ए हुस्न की दवा क्या है
यहाँ
हकीम
मुर्दों
पर
इ™ाज
नहीं
करते।
उनसे नजरें मि™ाने में क्या मजा है चिरा-
वो
बाहों
में
आ
जाएँ
तो
दीवाना
अच्छा
है|
रातों का मजा ™ब ए हुस्न की यादों में कितना हैं
खुदा
जाने
दि™ेरीपन
मेरे
वादों
में
कितना
है
तू
मय
का
जाम
है
मैं
तेरा
ही
बि-ड़ा
शराबी
हूँ
ये
मय
खाना
-वाह
है
दम
मेरे
इरादों
में
कितना
है।
मोहब्बत के राहों में दि™ ही खुदा है
क्या करें कब से वहीं -ुमशुदा है।
जिंद-ी में अनाड़ी ही रहा हूँ चिरा-
बस तजुर्बा है उनसे दि™ हारने का।
उनसे बिछड़ने का संदेसा हमसे सुना नहीं जाता
अब कोई "र सपना हमसे बुना नहीं जाता
तड़पता था दि™ उन्हें पाने की ख्वाइश में
मि™न की चाहत ज-ी थी उस बारिश में
पर आज बेवफाई उनके इरादों में हैं
मेरे ™िए उनकी बातें अब सिर्फ यादों में हैं
मर चुके हैं उनके साथ जिंदा रहने के बहाने
जिंद-ी भटकती रहे-ी मौत के मंजि™ को पाने
क्योंकि उनसे बिछड़ने का संदेसा हमसे सुना नहीं जाता
अब कोई "र सपना हमसे बुना नहीं जाता
अब कोई "र सपना हमसे बुना नहीं जाता...
-ुजरते वक़्त को बीती बातों में प™ना हैं
पर वो यादों का सूरज हैं जिसे कभी न कभी ढ™ना है
ए आशिक भू™ जा उसे
उस ™ड़की में वो बात नहीं
तेरी हाथों की ™कीरों में उसका हाथ नहीं
पर उस ™ड़की को खो देना
इस दि™ को -वारा नहीं
उसके बिना इस दुनिया में
मेरा कोई "र सहारा नहीं
न जाने कैसे हो-ा
अब जीवन का -ुजारा
क्योंकि उस ™ड़की के बिन हैं तनहा रातें
"र हर दिन आवारा।
बर्बाद-ए-इश्क में तेरा कुसूर क्या है
ये जुर्म की सजा है फिर भी जीना।
क™ तक सोचा करते थे तेरी बाहों पर हक़ सिर्फ मेरा है
आज देखा तो कोई "र वहाँ बु™ंद है।
उसकी "र मेरी सोच में बस इतना सा फर्क आ -या चिरा-
उसे वफा करना नही आया
मुझे खफा होना नही आया।
चरा-ों को ज™ने दो
उजा™ा सँवर जाये-ा
उम्मीदों को प™ने दो
अँधेरा सिमट जाये-ा
इश्क़ रफ़्तार से बढ़ता है
न किसी से रुका है न रुके-ा
प्यार दि™ों में च™ने दो
हर -ि™ा निपट जाये-ा।
हमसे दूर होकर भी हमारे पास रहते हो
इन नजरों में पनपते चाहतों को राज़ कहते हो
उफंते प्यार को ठुकरा न पाये-ा ह्रदय तेरा
जो तुम हमारे जिस्म के नस नस में बहते हो।
संघर्ष के पथ पर च™ पड़ा है शायर
कायर है मन हिम्मत पैरों में ज़्यादा हैं
क™म थक चूका हैं इंक़™ाब करते करते
अब आस अंधेरों में कम सवेरों में ज़्यादा हैं।
कभी अ™्फ़ाज़ों में छिपे अ™्फ़ाज़ों पे मत जाना
मोहब्बत के नशे में डूबे वादों पे मत जाना
ये जो दि™ शराबी हैं तेरी आँखों का कुसूर हैं
-र बि-ड़ी हो नियत तो इरादों पे मत जाना।
पुरानी राहों पर फिर साथ च™ने की -ुज़ारिश है
वहीं मेरे दि™ की बस्ती है वहीं खुशियों की बारिश हैं
धड़कती चाहतों के तूफ़ान में इन बाहों में खो जाना
तू मुझमें ही सिमट जाएँ ये खुद उसकी सिफारिश है।
दि™ पर ढाए ज़खमों को आंसु"ं से साफ़ करता -या
वो
-ुनाह
करती
-यी
"र
मैं
माफ
करता
-या
जरूर
उसकी
बेवफाई
का
इ™्म
नहीं
था
हमें
बस
खुदको
सजा
देकर
उसका
इंसाफ
करता
-या।
जीने की बेबसी, मरने का ख्वाब, सब तू हैं
सपनों
के
मंदिर
में
हैं
स्थापित
वो
रब
तू
हैं
तू
मुझसे
दूर
सही
पर
पास
आना
क्या
ज़रूरी
हैं
जो
सीने
में
च™ती
हर
साँस
का
हिस्सा
जब
तू
हैं।
जीने की निरसता में हर इक -ु™शन तुम्हारा हो
आंकांशा"ं
की
आरती
में
नाम
रोशन
तुम्हारा
हो
ये
तेरी
जीवनी
मेरे
™िए
संघर्ष
की
-ाथा
है
दुआ
है
हर
यशस्वी
फ™
का
आभूषण
तुम्हारा
हो।
- चिरा- कुमार