Jism Kiraaye Ka GharA Poem by Anmolयह जिस्म तो किराये का घर है…यह जिस्म तो किराये का घर है… एक दिन खा™ी करना पड़े-ा…|| सांसे हो जाएँ-ी जब हमारी पूरी यहाँ … रूह को तन से अ™विदा कहना पड़े-ा…।। वक्त नही है तो बच जाये-ा -ो™ी से भी समय आने पर ठोकर से मरना पड़े-ा…|| मौत कोई रिश्वत ™ेती नही कभी… सारी दौ™त को छोंड़ के जाना पड़े-ा…|| ना डर यूँ धू™ के जरा से एहसास से तू… एक दिन सबको मिट्टी में मि™ना पड़े-ा…|| सब याद करे दुनिया से जाने के बाद… दूसरों के ™िए भी थोडा जीना पड़े-ा…|| मत कर -ुरुर किसी भी बात का ए दोस्त… तेरा क्या है… क्या साथ ™ेके जाना पड़े-ा…|| इन हाथो से करोड़ो कमा ™े भ™े तू यहाँ … खा™ी हाथ आया खा™ी हाथ जाना पड़े-ा…|| ना भर यूँ जेबें अपनी बेईमानी की दौ™त से… कफ़न को ब-ैर जेब के ही "ढ़ना पड़े-ा…|| यह ना सोच तेरे ब-ैर कुछ नहीं हो-ा यहाँ …. रोज़ यहाँ किसी को “आना”तो किसी को “जाना” पड़े-ा…|| Read More Famous Poems
© 2014 Anmol |
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Added on August 24, 2014 Last Updated on August 24, 2014 Tags: jism, life poem, death poetry, love poetry |