देवों की चिंता- 1

देवों की चिंता- 1

A Poem by Saddam

पाता�™ �™ोक से �™ेकर स्वर्�-�™ोक तक
बढ़ रही थी मानवों की दख�™,
मानवों के इस कौतुह�™ का
देवों के पास नही था कोई ह�™।
देवों को चिंता सता रही थी,
मानवों की बाढ़ उनकी �"र बढ़ रही थी।।

सभी देव�-ण का स्वर्�-�™ोक में
चर्चा हुई इस बात पर,
सभी देव आरोप मढ़ रहे थे
किंतु आश्चर्यचकित थे इस घात पर।
विष्णु जी चिंतन किए इस बात की,
बो�™े- " हमें जरूरत है एक दूसरे के साथ की।।

तभी इन्द्र देव प्रकट हुए
बो�™े- "सुनो मेरी भी आशंका,
युं देखना कोई बात न हो�-ा
उपाय ढुंढ़ना हो�-ा कोई ढं�- का।
मानव कर हमें अपदस्थ,
स्वर्�-�™ोक पर जमाएं�-े अधिपत्।।

क्रोध मे उठे यमराज
�™िए सं�- �-दा, हाथ मे पाश,
बो�™े �-र्जना करते हुये
"मानवों का है आज सर्वनाश।
कांपने वा�™े नाम से थर - थर,
अपदस्थ करने आएं�-े हमारे घर।।

सभी देवों ने धीरज बंधाया
"मानवों का नही सर्वनाश,
उनके इस अंत में
अपना भी तो है विनाश।
नारायण भी सून रहे थे खड़े - खड़े,
अपनी बात कहने वह भी आ�-े बढ़े।।

© 2014 Saddam


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I don't know Hindi but I'm pretty sure it is good.

Posted 10 Years Ago


1 of 1 people found this review constructive.

Sami Khalil

10 Years Ago

I know. I have friends here in America that speak Hindi and Urdu...Atcha , atcha...
Saddam

10 Years Ago

nice to hear that, lovely... try it-BADIYA HAI. It means very good.
Sami Khalil

10 Years Ago

Badiya Hai...

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197 Views
1 Review
Added on January 3, 2014
Last Updated on January 3, 2014

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Saddam
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RASRA, BALLIA, Uttar Pradesh, India



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