मौन करूं धारण कैसे

मौन करूं धारण कैसे

A Poem by Mahi sain(Mahesh)


उत्पीड़न ना सहना आता है,

मुझको अपनी पीड़ा को,
कविता में कहना आता है !

कितने मुक्तक कितने �-ीत �"र अनेकों कविताएं,
हृदय उदधि में उमड़ रही हैं कितनी सारी धाराएं !

कवि की बेचैनी को ज�- में,
कोई समझ ना पाता है,
मुझको अपनी पीड़ा को,
कविता में कहना आता है !

जब भाव की बूंदें अंतस में बन शब्द टपकने �™�-ती हैं,
तब कितनी महनीय रचनाएं नयनों से बहने �™�-ती हैं !

आंसू कितने भी बह जायें,
पर शोक निक�™ ना पाता है,
मुझको अपनी पीड़ा को,
कविता में कहना आता है !

स्वप्न बडा़ ही व्याकु�™ है श्रृं�-ार श्रृष्टि का करने को,
मन की शाखाएं आतुर हैं सत्कार सुरभि का करने को !
आशा है जिसके जीवन में,
उसे सम्भ�™ना आता है,
मुझको अपनी पीड़ा को,
कविता में कहना आता है !

नहीं कठिन है �™क्ष्य भेदना विश्वास अट�™ हो यदि प्रण में,
मानव के पथ की बाधाएं खण्डित हो जायें कण कण में !

प्राण �™�-ा दे प्रण में जो,
वही विजय श्री पाता हो,
मुझको अपनी पीड़ा को,
कविता में कहना आता है !

निर्म�™ अनुरा �- नहीं देखा स्नेहि�™ भाव नहीं देखा,
तन की काया देखी सब ने पर मन का घाव नहीं देखा !

मन की व्यथा-दशा आंखों में,
बस कवि को पढ़ना आता है,
मुझको अपनी पीड़ा को,
कविता में कहना आता है

© 2019 Mahi sain(Mahesh)


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Added on September 6, 2019
Last Updated on September 6, 2019