Na Jaane Kahaan Kho Gayee (Hindi)

Na Jaane Kahaan Kho Gayee (Hindi)

A Poem by Gurdeep...The Lost

                                                                न जाने कहाँ खो �-यी !


बारिश के पानी में च�™ती,
एक का�-ज कि मेरी कश्ती थी,
कई सा�™ों से धूंड रहा हूँ,
न जाने कहाँ खो �-यी ! 

उस छोटे से मन में मेरे,
एक प्यारी वेपर्वाही थी,
कई सा�™ों से धूंड रहा हूँ,
न जाने कहाँ खो �-यी !

मित्रों के चेहरे पर हमेशा,
एक प्यारी सि मुस्कान थी,
उसी मुस्कान को धूंड रहा हूँ,
न जाने कहाँ खो �-यी ! 

जब धन का नहीं था �™ोभ,
पर �-�-न छूने की आस् थी,
उसी आस् को धूंड रहा हूँ,
न जाने कहाँ खो �-यी !

वर्षा पश्चात ,तब इन्द्रधनुष ,
रं�- खुशियों के फै�™ाता था,
उसी रं�-त को धूंड रहा हूँ,
न जाने कहाँ खो �-यी !

बद�™ तब सिर्फ़ बद�™ा ही नहीं,
हाथी, घोड़ों जैसे भी दिखते थे,
उसी द्रिश्टी को धूंड रहा हूँ.
न जाने कहाँ खो �-यी !

जब बुद्धि इतनी बा�™ थी, सर्हदो का पता न था,
हर एक टुकड़ा भूमि का, अपना सा ही तो �™�-ता था !
उसी बुद्धि को धूंड रहा हूँ,
न जाने कहाँ खो �-यी !

जहाँ चिंता�"ं का शोर न था,
बस हँसी  खि�™्खि�™ाति थी,
उसी हँसी को धूंड रहा हूँ ,
न जाने कहाँ खो �-यी !  
 
जहाँ इंद्रियों का नहीं था ज़ोर,
बस नादानी हर �"र थी,
वही नादानी धूंड रहा हूँ,
न जाने कहाँ खो �-यी !

जब चेतना इतनी सीमित थी, कहीं दूर् जाने का खया�™ न था
माँ के अंच�™ में ही जो, विश्व नजर आ जाता था !
वही चेतना धूंड रहा हूँ,
न जाने कहाँ खो �-यी !

© 2015 Gurdeep...The Lost


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241 Views
Added on July 12, 2015
Last Updated on July 12, 2015

Author

Gurdeep...The Lost
Gurdeep...The Lost

Shillong, Meghalaya, India



About
Hello ! Being an amateur poet, I like to express thoughts, feelings and even situations through poems. General and personal imagery, both enthuse me, depending upon the requirement. I am an engineer b.. more..

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