अपनी क़िस्मत को फिर बद™ कर देखते हैंA Poem by Muhammad Asif Aliअपनी क़िस्मत को फिर बद™ कर देखते हैं आ" मुहब्बत को एक बार संभ™ कर देखते हैं चाँद तारे फू™ शबनम सब रखते हैं एक तरफ महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है हम रूह-"-रवाँ को अपनी जान कर के देखते हैं छोड़ देते हैं कुछ दिन ये फ़ज़ा का मुक़ाम चंद रोज़ इस घर से निक™ कर देखते हैं ™ौह-ए-फ़ना से जाना तो फ़ितरत है सभी की यार-ए-शातिर पे एतिबार फिर कर कर देखते हैं कौन सवार हैं कश्ती में कौन जाता है साहि™ पर सात-समुंदर से 'आसिफ' -ुफ़्त-ू कर कर देखते हैं ~ मुहम्मद आसिफ अ™ी (भारतीय कवि)
© 2022 Muhammad Asif Ali |
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Added on May 12, 2022 Last Updated on May 12, 2022 AuthorMuhammad Asif AliKashipur, India, IndiaAboutMuhammad Asif Ali is a member of a middle family born in the city of Kashipur, India. He did high school in 2015 from Government High Secondary School Basai, Kashipur. After that, he studied Intermedi.. more..Writing
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