बदनाम हैँ वो

बदनाम हैँ वो

A Poem by Akhil

कमरे की उस खिड़की पर , वो खामोश सी बैठी रहती हैं
अंधेरे से उस कमरे में अब वो खुद में खोई रहती हैं
अब ना चीखती वो ना चि�™्�™ाती वो , बस कही �-ुमनाम हैं वो
नौ महीने जिसे कोख में रखा , अब उन्ही के �™िए बदनाम हैं वो

वक़्त ने उस उड़ती परी को एक प�™ में ही कैद किया
एक चुटकी सिंदूर ने उसको बंधनों में जकड़ दिया
एक एक कर के सारे सपने उन नौ महीनों में बिखर �-ये
जाते जाते वो सपने उसे एक नई जिम्मेदारी में जकड़ �-ये

पिंजरे में बंद होकर भी अब वो नई कहानी �™िखना चाहती थी
देखे थे जो सपने उसने उन्हे अपनी नन्ही जानो में भरना चाहती थी
हर दिन नई चुनौतियों से �™ड़कर वो अपने कदम बढाती हैं
दर्द में भी होती तो उन बच्चों के चेहरे देख मुस्कुरा जाती हैं।

खून पसीना एक एक करके उस बच्चे को बड़े बं�-�™े तक पहुंचाया हैं
पर उन रईस दीवारों ने इस माँ को ही ठुकराया हैं
वक़्त के �-ंदे खे�™ ने एक परी को अब कैद किया
जिनके �™िए वो मुस्कुराती थी उसने ही रोने पर मजबूर किया


टूट चुकी वो अंदर से , बस चुपचाप कही �-ुमनाम हैँ वो
नौ महीने जिसे कोख में रखा उन्ही के �™िए अब बदनाम हैँ वो ।

© 2023 Akhil


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Added on May 3, 2023
Last Updated on May 3, 2023
Tags: #mother

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Akhil
Akhil

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थोड़े खट्टे थोड़े मीठे ख्वाबों का जì.. more..